हमास ने जब शनिवार तड़के इजरायल पर हमला किया तब इसके कुछ घंटों बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास के हमले को आतंकी हमला करार देते हुए कहा कि मुश्किल की इस घड़ी में भारत इजरायल के साथ मजबूती से खड़ा है। मंगलवार को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी से फोन पर बात की। इस बातचीत में पीएम मोदी ने एक बार फिर से दोहराया कि भारत इजरायल के साथ है और आतंकवाद के हर रूप की घोर निंदा करता है। मध्य-पूर्व के इस्लामिक देश फिलिस्तीन के साथ मजबूती से खड़े दिखते हैं और वो फिलिस्तीनियों के लिए अलग राष्ट्र की मांग करते रहे हैं।
हालांकि, यूएई, बहरीन, मोरक्को जैसे कुछ इस्लामिक देशों का रुख अब इजरायल को लेकर बदल रहा है। यूएई, बहरीन ने तो हमले के लिए हमास की निंदा भी की है। भारत में भी इस मामले पर सियासी चर्चा तेज हो गई है क्योंकि भारत परंपरागत रूप से फिलीस्तीन का समर्थन करता आ रहा है लेकिन मोदी सरकार खुलकर इजरायल के साथ खड़ी दिख रही है।
हमास के हमले के कुछ घंटों बाद ही पीएम मोदी ने एक्स (ट्टिटर) पर किए गए एक ट्वीट में कहा, ‘इस मुश्किल घड़ी में हम इजरायल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।’
आमतौर पर ऐसे मामलों में भारत का विदेश मंत्रालय बयान जारी करता है लेकिन पीएम मोदी ने ऐसा न करते हुए तुरंत ट्वीट कर कहा, ‘इजरायल पर आतंकी हमलों से गहरा सदमा लगा है। हमारी प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवार वालों के साथ है।’ प्रधानमंत्री के इस ट्वीट को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी रीट्वीट किया।
पीएम मोदी ने इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से फोन पर बातचीत को लेकर भी एक ट्वीट किया है। मंगलवार को किए ट्वीट में पीएम मोदी ने लिखा, ‘प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने मुझे फोन कर स्थिति की ताजा जानकारी दी जिसे लेकर मैं उनका धन्यवाद करता हूं। इस मुश्किल घड़ी में भारत के लोग मजबूती से इजरायल के साथ खड़े हैं। भारत आतंकवाद के सभी रूपों की कड़ी और स्पष्ट रूप से निंदा करता है।’
भारत ने मामले पर जितनी जल्दी प्रतिक्रिया दी और इजरायल का पक्ष लिया, उसे कई विश्लेषक मोदी सरकार की इजरायल-फिलीस्तीन पर बदली नीति के रूप में देख रहे हैं। भारत इस तरह के संकट में किसी एक देश का पक्ष लेने के लिए नहीं जाना जाता लेकिन इस बार भारत ने तुरंत इजरायल का पक्ष लिया है। भारत ने इससे पहले फिलिस्तीन की तरफ से किसी हमले को आतंकी हमला कहकर भी संबोधित नहीं किया था।
पीएम मोदी और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के व्यक्तिगत संबंध काफी मजबूत माने जाते हैं। पीएम मोदी से पहले किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल की यात्रा तक नहीं की थी। साल 2017 में पीएम मोदी इजरायल के दौरे पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने।
पीएम मोदी के बयान पर एक्सपर्ट क्या बोले?
भारत के रुख को लेकर पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा है कि यहां बात इजरायल को समर्थन करने या न करने की नहीं है बल्कि बात इजरायल पर हमास के आतंकी हमले की है और भारत के प्रधानमंत्री ने इजरायल पर आतंकी हमले की निंदा की है।
कंवल सिब्बल ने कहा, ‘हमारे प्रधानमंत्री ने हमास के आतंकी हमले को लेकर तुरंत प्रतिक्रिया दी कि वो हमलों से स्तब्ध हैं। हम सभी जानते हैं कि आतंकवाद का मुद्दा भारत के लिए बेहद बड़ा मुद्दा है और हम सभी बड़े अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसे उठाते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस बात को लेकर सहमत है कि चाहे उसका कारण कुछ भी हो, आतंकवाद को सही नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए हमास और फिलिस्तीनियों के पास भले ही हमले के लिए कोई कारण था, उनके हमले को हम सही नहीं ठहरा सकते।’
कंवल सिब्बल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो बयान दिया है, उसे राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि उसका संदर्भ केवल और केवल आतंकवाद है।
‘हमास पूरे फिलिस्तीन का नेतृत्व नहीं करता इसलिए…’
विदेश मामलों के जानकार पत्रकार सी राजा मोहन का मानना है कि हमास की आलोचना को फिलिस्तीन के खिलाफ इसलिए भी नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि हमास पूरे फिलिस्तीन का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में वो कहते हैं कि फिलिस्तीन की प्रशासनिक राजधानी रामल्ला स्थित फिलिस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण और गाजा स्थित हमास के बीच भारी मतभेद रहे हैं। भारत ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के साथ रिश्ते हमेशा बरकरार ही रखे हैं जिसका सबसे बड़ा उदाहरण साल 2018 में पीएम मोदी की रामल्ला की यात्रा है।
सी राजा मोहन कहते हैं कि भले ही पीएम मोदी ने इजरायल के साथ संबंधों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है लेकिन इजरायल से रिश्ते सुधारने की पहल कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय में ही शुरू हो गई थी। राजीव गांधी ने इजरायल से दूरी बनाकर रखने की भारत की नीति को खत्म किया था। उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए पी वी नरसिम्हा राव ने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2003 में तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन की मेजबानी कर दोनों देशों के मजबूत रिश्तों की नींव तैयार की थी।
उन्होंने अपने आर्टिकल में आगे लिखा है, हालांकि, वाजपेयी के बाद यूपीए की सरकार इजरायल के साथ संबंधों को खुलकर आगे बढ़ाने में हिचकिचाने लगी। यह इसलिए हुआ क्योंकि सरकार पर लेफ्ट पार्टियों का दबाव था और मध्य-पूर्व की नीति को लेकर कांग्रेस भ्रम की स्थिति में थी। लेकिन मोदी सरकार ने इजरायल के साथ अपने हितों को देखते हुए भारत के पारंपरिक रुख को बदल दिया। प्रधानमंत्री मोदी इजरायल दौरे पर भी गए। इससे पहले किसी भारतीय पीएम ने इजरायल का दौरा नहीं किया था।
खुलकर इजरायल के समर्थन को लेकर कांग्रेस हुई नाराज
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद इजरायल-हमास जंग में भारत के रुख को लेकर सहमत नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में खुर्शीद ने कहा है कि भारत को फिलिस्तान में शांति के प्रयास करने चाहिए थे।
खुर्शीद ने कहा, ‘काश ऐसा होता कि भारत फिलिस्तीन में शांति की स्थापना के लिए कोशिश करता। फिलिस्तीन को लेकर हमारा ऐतिहासिक रिकॉर्ड यही रहा है लेकिन दुर्भाग्य से अब यह बदल गया है। मुझे लगता है कि शांति के लिए मिस्र, कतर और कई देश कोशिश कर रहे हैं लेकिन भारत इस प्रयास में कही नहीं है। मुझे इस बात से निराशा महसूस होती है।’
प्रधानमंत्री ने अपने बयान में इजरायल का समर्थन किया लेकिन फिलिस्तीन का जिक्र नहीं किया. इसे लेकर सलमान खुर्शीद ने कहा, ‘आज दुनिया में जिन मुद्दों का भी हम सामना कर रहे हैं, वो बेहद चुनौतीपूर्ण हैं और उसे लेकर कोई फैसला लेना मुश्किल है लेकिन हम उन मुद्दों पर अपने इतिहास से सीख सकते हैं. लेकिन अगर सरकार कांग्रेस सरकार के अनुभवों से नहीं सीखना चाहती तो हम कुछ नहीं कर सकते. मेरा मानना है कि हमें हर स्थिति में संतुलन बनाकर रहना चाहिए.’
खुर्शीद ने कहा कि भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रणेता रहा है और गुट निरपेक्षता आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं लगता कि अब भारत गुटनिरपेक्षता का अनुसरण कर रहा है।