चुनाव आयोग ने पांच राज्यों उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, पंजाब,मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव तारीखों की घोषणा कर दी है। उत्तर प्रदेश में सात चरणों में और बाकी राज्यों में एक-एक चरण में चुनाव होंगे। 10 मार्च को सभी राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित किये जाएंगे। चुनाव तारीखों ऐलान के बाद पांचों राज्यों में आर्दश आचार संहिता लागू हो गई है।
क्या होती है आर्दश आचार संहिता?
आदर्श आचार संहिता राजनैतिक पार्टियों और चुनाव प्रत्याशियों के मार्गदर्शन के लिए चुनाव आयोग द्वारा तय किए गए कुछ नियम होते हैं, जिनका चुनाव के दौरान पालन किया जाना आवश्यक होता है। चुनाव आयोग की ओर से दी गई परिभाषा के अनुसार, आदर्श आचार संहिता राजनैतिक दलों और अभ्यर्थियों के मार्गदर्शन के लिए निर्धारित किए गए मानकों का एक ऐसा समूह है जिसे राजनैतिक दलों की सहमति से तैयार किया गया है।
जनप्रतिनिधियों पर लगते हैं कई तरह के प्रतिबंध
आचार संहिता लागू होने के बाद नेताओं और मौजूदा जनप्रतिनिधियों पर कुछ पाबंदियां लग जाती है। लोकसभा चुनाव के दौरान यह पूरे देश में जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में लागू हो जाती है। आचार संहिता में निर्धारित किया जाता है कि राजनीतिक दलों, निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यथियों और सत्ताधारी दल को निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान कैसा व्यवहार करना चाहिए। इसमें बैठकें आयोजित करने, रैली, जुलूस, मतदान दिवस की गतिविधियां, सत्ताधारी दल के कामकाज से जुड़े नियम होते हैं।
कब लागू होती है आचार संहिता
आदर्श आचार संहिता को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन अनुसूची की घोषणा की तारीख से लागू किया जाता है और यह निर्वाचन प्रक्रिया के पूर्ण होने तक लगी रहती है।
क्या नहीं कर सकते हैं जनप्रतिनिधि?
चुनाव आयोग के अनुसार, मंत्री अपने आधिकारिक दौरे को चुनाव प्रचार संबंधी कार्यों के साथ नहीं मिलाएंगे और न ही चुनाव प्रचार संबंधी कार्यों के दौरान सरकारी तंत्र या कार्मिकों का प्रयोग करेंगे। हालांकि, आयोग ने चुनाव प्रचार दौरे के साथ आधिकारिक दौरे को मिलाने संबंधी आदर्श आचार संहिता के प्रावधान से प्रधानमंत्री को छूट दी हुई है।
सरकारी वाहन को किसी भी पार्टी या प्रत्याशी हितों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रयोग नहीं किया जाएगा।
चुनाव के आयोजन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए सभी अधिकारियों/पदाधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती पर संपूर्ण प्रतिबंध होगा। अगर किसी का ट्रांसफर करना भी है तो पहले चुनाव आयोग से इसकी इजाजत लेनी होगी। इसके अलावा खाली पदों पर भी कार्यभार नहीं दिया जा सकता।
कोई भी मंत्री चुनाव की अवधि के दौरान किसी आधिकारिक चर्चा के लिए किसी राज्य या चुनाव क्षेत्र के निर्वाचन संबंधी अधिकारी को नहीं बुला सकता है।
आचार संहिता के दौरान मंत्री अपने आधिकारिक वाहन केवल अपने आधिकारिक निवास से अपने कार्यालय तक शासकीय कार्यों के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे। ये चुनाव प्रचार के लिए काम में नहीं ली जा सकती है।
राजनीतिक कार्यकर्ताओं के निवास स्थान पर सरकारी कोष के खर्चे से “इफ्तार पार्टी” या ऐसी ही कोई अन्य पार्टी आयोजित नहीं की जा सकती है।
कौन-कौन से काम नहीं होंगे?
चुनाव आयोग के अनुसार, सत्ताधारी पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए उपलब्धियों के संबंध में सरकारी कोष की लागत पर कोई भी विज्ञापन जारी नहीं हो सकते।
सरकार के होर्डिंग, विज्ञापन आदि के बोर्ड हटा दिए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित अन्य मीडिया पर सरकारी राजकोष के खर्चें पर कोई विज्ञापन जारी नहीं किया जाएगा।
चुनाव के दौरान कोई भी जनप्रतिनिधि अनुदान या भुगतान नहीं कर सकते हैं।
चुनाव की घोषणा से पहले जारी कार्य आदेश के संबंध में अगर क्षेत्र में वास्तविक रूप से कार्य शुरू नहीं किया गया है तो उसे शुरू नहीं किया जाएगा।
ऐसे किसी भी क्षेत्र में जहां चुनाव चल रहे है, वहां निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण होने तक एमपी/एमएलए/एमएलसी स्थानीय क्षेत्र विकास फंड की किसा योजना के अंतर्गत निधियों को नए सिरे से जारी नहीं किया जाएगा।
कोई भी मंत्री या अन्य प्राधिकारी किसी भी रूप में कोई वित्तीय अनुदान या उससे संबंधित कोई वायदा नहीं करेंगे। किसी परियोजना अथवा योजना की आधारशिला इत्यादि नहीं रखेंगे, या सड़क बनवाने, पीने के पानी की सुविधा इत्यादि उपलब्ध करवाने का कोई वायदा नहीं करेंगे। इसके अलावा सरकार या निजी क्षेत्र के उपक्रमों में तदर्थ आधार पर कोई नियुक्ति नहीं करेंगे। चुनाव अवधि के दौरान ऐसी योजनाओं के उद्घाटन/घोषणा पर प्रतिबंध है। चाहे पहले से इसका काम हो चुका हो।