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वीरेंद्र सिंह, चुनावी रणनीतिकार

मणिपुर देश के उन पांच राज्यों में है, जहां तीन माह बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। मणिपुर में फिलहाल बीजेपी सत्ता में है और विपक्षी कांग्रेस उसे कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। मणिपुर विधानसभा 60 सदस्यीय है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को 21 सीटें ही मिली थीं, लेकिन उसने जोड़-तोड़ के जरिए 3 क्षेत्रीय दलों नगा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पीपुल्स पार्टी और लोकजनशक्ति पार्टी के समर्थन से सरकार बना ली। जबकि कांग्रेस को 28 सीटें जीतकर भी विपक्ष में ही बैठना पड़ा।

मैतेई समुदाय की मांग और चुनावी मुद्दा

इस बार लोकजनशक्ति पार्टी एनडीए से बाहर अलग चुनाव लड़ेगी। लेकिन इससे भाजपा को खास फर्क पड़ने वाला नहीं है, क्योंकि पांच सालों में उसने मणिपुर में अपनी जड़ें काफी जमा ली हैं। खासकर राज्य के प्रभावशाली समुदाय मैतेई में भाजपा और आरएसएस ने अपनी जमीन मजबूत की है।

मैतेई राज्य की कुल 27 लाख आबादी का आधा हैं और मुख्य रूप से इम्फाल घाटी में बसते हैं। इनमें से अधिकांश हिंदू धर्म को मानते हैं। दिलचस्प बात यह है कि राज्य का सबसे प्रभावशाली समुदाय होने के बाद भी यह समाज अनुसूचित जनजाति वर्ग ( आदिवासी) में आरक्षण की मांग कर रहा है। राज्य की दूसरी जनजातियां इसका कड़ा विरोध कर रही हैं। यह इस बार अहम चुनावी मुद्दा बन सकता है।

गौरतलब है कि मणिपुर का मैतेई समुदाय हिंदू धर्म में 17 वीं 18 सदी में ही धर्मांतरित हुआ है। मैतेइयों का दावा है कि वे सदियों से इस क्षेत्र में रहते आए हैं और पिछले दिनो किए गए समाजार्थिक और नृवंशविज्ञानी सर्वेक्षणों में माना गया है कि मैतेई भी आदिवासी हैं। लिहाजा मैतेई संगठनो ने अपने समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करवाने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है।

हालांकि सरकार ने इस मांग पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया है, लेकिन इस वजह से मैतेई और अन्य आदिवासी समुदायों में टकराव बढ़ गया है। मैतेई समुदाय की इस मांग से इस मांग से राज्य की दूसरी जनजातियां नाराज हैं। उनका कहना है कि मैतेई अब किसी कोण से आदिवासी नहीं रह गए हैं। इन आदिवासियों को डर है कि अगर सरकार ने मैतेई को आदिवासी का दर्जा दिया तो वो गरीब आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर लेंगे।

दरअसल, भविष्य में अलग मैतेई राज्य की मांग भी जोर पकड़ सकती है। इस बारे में राज्य के कुकी जनजातीय समुदाय का कहना है कि पहले मैतेई बरसों तक खुद को आदिवासी कहलाने का विरोध करते रहे, अब वो आदिवासी का दर्जा क्यों चाहते हैं? माना जाता है कि इसकी कारण आर्थिक दबाव और प्रशासन में मैतेई समुदाय का कम दबदबा भी हो सकता है।

जहां तक राज्य में सत्ता परिवर्तन की बात है तो इतना यह तय है कि यदि स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस के लिए सरकार बनाना कठिन होगा। कांग्रेस को चुनाव के पहले ही झटके लग रहे हैं। हाल में कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष गोविंदास कोंथुजाम भाजपा में शामिल हो गए। गोविंदास बिशनपुर सीट से 6 बार विधायक रहे हैं।

उधर कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता जयराम रमेश को पूर्वोत्तर राज्यों का प्रभारी बनाया है, लेकिन जोड़-तोड़ के मामले में वो कितने स्मार्ट साबित होते हैं, यह तो चुनाव नतीजों से ही पता चलेगा। राज्य में कांग्रेस की कमान ओकराम इबोबी के हाथ में है। लेकिन इबोबी के नेतृत्व को लेकर भी कांग्रेस में भारी असंतोष है। मजे की बात है कि इबोबी का भतीजा हेनरी सिंह अब बिरेनसिंह सरकार में मंत्री है।

चुनावी हिसाब-किताब?

उधर मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराॅड संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी भी राज्य में 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। अभी एनपीपी सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन सरकार का हिस्सा है। पिछले विधानसभा चुनाव में एनपीपी ने 4 सीटें जीती थीं। राज्य में ममता बनर्जी की टीएमसी भी अपनी ताकत बढ़ाने में लगी है। जबकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी राज्य में अपनी जमीन पुख्ता करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। लक्ष्य यही है कि पार्टी अपने दम पर सत्ता में लौट सके। इसके लिए निचले स्तर तक संगठन को मजबूत किया जा रहा है।

जनता को बिरेन सिंह सरकार की उपलब्धियां बताई जा रही हैं। लेकिन मुख्य जोर राज्य के बहुसंख्य मैतेई समुदाय में भाजपा की जड़ें मजबूत करने का है। क्योंकि ज्यादातर मैतेई हिंदू गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी हैं। करीब 16 फीसदी मैतेई स्थानीय सानामाही धर्म को मानते हैं। राज्य की 60 में 39 विधानसभा सीटें उस इम्फाल घाटी क्षेत्र में पड़ती हैं, जो मैतेई बहुल इलाका है। बाकी 21 सीटें पहाड़ी क्षेत्र में हैं।
बीजेपी की कोशिश है कि इम्फाल घाटी क्षेत्र की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीती जाएं ताकि सरकार बनाने में आसानी हो। यह भी उल्लेखनीय है कि मणिपुर में आरएसएस 1952 से सक्रिय है। वर्तमान में राज्य में इसकी 115 इकाइयां काम कर रही हैं।

संघ राज्य के पांच जिलों में स्कूल भी चलाता है। मणिपुर के मैतेई समुदाय में ब्राह्मण भी हैं। स्थानीय भाषा में उन्हें बामोन कहा जाता है। 2016 में पूर्व सैनिक ब्रहमचारीमायुम अंगोसाना शर्मा ने एक क्षेत्रीय ‘मैतेई नेशनलिस्ट पार्टी’ का गठन किया था। यह पार्टी ‘ अखंड भारतवर्ष’ की समर्थक है। बीजेपी ने पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ने के लिए कृष्ण और रूक्मिणी को प्रतीक बनाया है।

मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने पिछले दिनों गुजरात के पोरबंदर में एक आयोजन में कहा, अतीत में भगवान कृष्ण और रूक्मिणी के विवाह से पूर्वोत्तर शेष भारत के और करीब आ गया। हालांकि कुछ लोगों का आरोप है कि मैतेई समुदाय को हिंदुत्व की छतरी में लाकर उनकी मूल अस्मिता को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। इसका एक कारण यह भी है कि ज्यादातर मैतेई वैष्णव मत के साथ-साथ उनके प्राचीन और स्थानीय सानामाही और लीमारेल धर्म को भी मानते हैं।

मुख्यमंत्री नोंगथोमबाम बिरेन सिंह बीजेपीनीत सरकार के पहले मुख्यमंत्री हैं। वैसे बिरेन सिंह का कार्यकाल भी निष्कंटक नहीं रहा है। दो साल पहले उन्हें पद से हटाने की भाजपा के भीतर से ही मांग उठी थी। लेकिन पार्टी आलाकमान के हस्तक्षेप और मंत्रिमंडल पुनर्गठन के बाद मामला ठंडा हुआ था।

दरअसल, मोटे तौर माना जाता है कि मुख्यमंत्री बिरेन सिंह राज्य के गैर आदिवासी तथा आदिवासी नगा और कुकी समुदाय के बीच सामंजस्य बनाए रखने में सफल रहे हैं।

इस बीच बीजेपी की नजर मुख्यत: कांग्रेस विधायकों पर है। आश्चर्य नहीं कि चुनाव की घोषणा के साथ कई कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल होते दिखें, क्योंकि पिछले दिनो राज्य में पांच विस सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने चार सीटें जीत ली थीं। एक पर निर्दलीय प्रत्याशी जीता था। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी।

उधर भारत की सितारा बाॅक्सर और राज्यसभा सदस्य मैरीकॉम के पति के ओंखलर ने राजनीति में उतरने का ऐलान कर दिया है। वो चंद्रचूड़पुर जिले की साइकोट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। उन्हें चर्च का समर्थन प्राप्त है। साइकोट सीट अभी कांग्रेस के पास है।

वैसे मणिपुर में आंतरिक द्वंद्व कई स्तरों पर हैं। पहाड़ी इलाको के निवासी नगा और कुकी तथा नगा और मैतेइयों में भी नहीं पटती। बीजेपी का ‘नगा पीपुल्स पार्टी’ के साथ गठबंधन मैतेइयों की नजर में ‘अपवित्र’ गठबंधन है। मैतेई पिछले दिनो भारत सरकार और कुछ नगा संगठनों के बीच हुए ‘फ्रेमवर्क समझौते’ के भी खिलाफ थे।

दरअसल, इसका कारण है कि वृहद नगालैंड (नगालिम) की मांग में मणिपुर का नगा क्षेत्र भी शामिल है। मैतेई कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी जमीन का कुछ हिस्सा नगालैंड में मिला दिया जाए। हाल में नगालैंड में उभरी भारत विरोधी भावनाओं का असर मणिपुर चुनाव में भी दिख सकता है।

सवाल यह है कि इस विधानसभा चुनाव में संभावित मुद्दे क्या होंगे? भाजपा राज्य में हिंदुत्व और विकास पर जोर दे रही है। भाजपा बिरेन सिंह सरकार के कार्यकाल को ‘नागरिक केन्द्रित शासन’ के रूप में गिना रही है।

इसके अलावा राज्य में इम्फाल के आसपास बरसो से लागू आफ्स्पा कानून हटाने तथा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग मुख्य मुद्दा हो सकती है। इसकी सही तस्वीर चुनाव घोषणा के बाद ही साफ होगी।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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